“नाड़ी शोधन प्राणायाम (Anulom Vilom): विधि, लाभ, सावधानियाँ और वैज्ञानिक कारण” Nadi Shodhana Pranayama in Hindi”
परिचय नाड़ी शोधन प्राणायाम
नाड़ी शोधन प्राणायाम, जिसे अनुलोम-विलोम प्राणायाम के नाम से भी जाना जाता है, योग की एक प्राचीन और शक्तिशाली श्वास तकनीक है।
नाड़ी का अर्थ है ऊर्जा का प्रवाह मार्ग। शोधन का अर्थ है शुद्ध करना।
इस प्राणायाम का मुख्य उद्देश्य शरीर के 72,000 से अधिक सूक्ष्म ऊर्जा चैनलों (नाड़ियों) को शुद्ध करना है, जिससे प्राण ऊर्जा (जीवन शक्ति) का प्रवाह सुचारू रूप से हो सके। यह तकनीक मन और शरीर के बीच संतुलन स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, और इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण और प्रभाव भी निहित हैं।
योग केवल आसनों तक सीमित नहीं है। यह मनुष्य के सम्पूर्ण अस्तित्व को संतुलित करने का विज्ञान है। योग का चौथा अंग प्राणायाम है, जो श्वास-प्रश्वास को नियंत्रित करके न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आत्मिक स्तर पर भी गहरा प्रभाव डालता है।
प्राणायाम में सबसे प्रमुख और संतुलनकारी अभ्यास है – नाड़ी शोधन प्राणायाम।
अर्थात् यह प्राणायाम नाड़ियों को शुद्ध करके प्राण-ऊर्जा को संतुलित करता है।
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प्रणायाम |
नाड़ी शोधन प्राणायाम की विस्तृत विधि
1. तैयारी
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नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास सही तरीके से करना बेहद ज़रूरी है ताकि इसके अधिकतम लाभ मिल सकें।
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सबसे पहले, एक शांत और हवादार जगह चुनें जहाँ आप विचलित न हों। और शांत, स्वच्छ और खुले स्थान पर बैठें।
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बेहतर है कि प्रातःकाल (सूर्योदय से पहले) या सायंकाल (सूर्यास्त के बाद) इसका अभ्यास करें।
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बैठने के लिए पद्मासन, सिद्धासन या सुखासन चुनें।
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रीढ़ सीधी रखें, कंधे ढीले छोड़ दें और आँखें बंद कर लें।
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अगर आप किसी विशेष आसन मै नहीं बैठ सकते तो कुर्सी पर बैठ जाए, पर ध्यान रहे कमर और रीढ़ सीधी रहे।
2. हाथ की मुद्रा
दाहिने हाथ को नासिका मुद्रा में रखें:
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अंगूठे से दाहिनी नासिका को बंद करें।
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अनामिका और कनिष्ठा से बायीं नासिका को बंद करें।
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तर्जनी और मध्यमा को हल्के से भृकुटि (आँखों के बीच) पर टिकाएँ।
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बाईं हथेली को घुटने पर ज्ञान मुद्रा में रखें।
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प्राणायाम मुद्रा |
3. श्वास की प्रक्रिया
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दाहिनी नासिका बंद कर बायीं नासिका से श्वास लें।
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अब बायीं नासिका बंद कर दाहिनी नासिका से श्वास छोड़ें।
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फिर दाहिनी नासिका से श्वास लें और
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बायीं नासिका से श्वास छोड़ें।
यह नाड़ी शोधन का साधारण अभ्यास हुआ, इसको आप अनुलोम विलोम भी बोल सकते है।
4. समय और अवधि प्रारंभ में 5 मिनट अभ्यास करें।
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धीरे-धीरे 15–20 मिनट तक कर सकते हैं।
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श्वास की गिनती का संतुलन रखें (जैसे 1:2 अनुपात – जितनी देर मै श्वास अंदर लिया उससे दोगुने समय मै बाहर छोड़े)
5. नाड़ी शोधन का मध्यम और उच्च अभ्यास
प्राण मुद्रा (विष्णु मुद्रा): अपने दाहिने हाथ का उपयोग करें। तर्जनी और मध्यमा को मोड़कर अंगूठे के आधार पर रखें। अनामिका और छोटी उंगली को सीधा रखें। अंगूठे का उपयोग दाहिने नथुने को बंद करने के लिए और अनामिका का उपयोग बाएं नथुने को बंद करने के लिए करें।
अभ्यास के चरण
चरण 1 (बाएं से श्वास लेना): अपनी आँखें बंद करें और दाहिने नथुने को दाहिने अंगूठे से हल्के से बंद करें। अब, बाएं नथुने से धीरे-धीरे और गहराई से श्वास अंदर लें। पेट और सीने को फुलाएं। श्वास लेने की प्रक्रिया को कम से कम 4 सेकंड तक करें।
चरण 2 (श्वास रोकना): श्वास लेने के बाद, दोनों नथुनों को बंद करें। बाएं नथुने को अनामिका से और दाहिने नथुने को अंगूठे से बंद करें। इस अवस्था में, श्वास को कुछ देर रोकें। शुरुआत में इसे 8 से 16 सेकंड तक कर सकते हैं, लेकिन अपनी क्षमता से अधिक न करें।
चरण 3 (दाएं से श्वास छोड़ना): अब, दाहिने नथुने से अंगूठे को हटाएँ और धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ें। श्वास छोड़ने की प्रक्रिया श्वास लेने की तुलना में दोगुनी होनी चाहिए, यानी 8 से 16 सेकंड तक।
चरण 4 (दाएं से श्वास लेना): दाहिने नथुने से पूरी तरह श्वास छोड़ने के बाद, इसी नथुने से श्वास अंदर लें। श्वास लेने की अवधि 4 सेकंड रखें।
चरण 5 (श्वास रोकना): दोनों नथुनों को बंद करके श्वास को 8 से 16 सेकंड तक रोकें।
चरण 6 (बाएं से श्वास छोड़ना):: अंत में, अनामिका को हटाकर बाएं नथुने से धीरे-धीरे श्वास बाहर छोड़ें। श्वास छोड़ने की अवधि 8 से 16 सेकंड रखें।
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प्राणायाम |
यह एक पूर्ण चक्र है। शुरुआत में 5 से 10 चक्रों से शुरू करें और धीरे-धीरे संख्या बढ़ाएँ। एक चक्र का अनुपात 1:4:2 (श्वास लेना: रोकना: छोड़ना) है। उदाहरण के लिए, 4 सेकंड श्वास लें, 16 सेकंड रोकें, और 8 सेकंड श्वास छोड़ें।
यह एक उच्च लेवल का अभ्यास है, इसको करने मै समय लग सकता है। प्रारंभ मै साधारण अभ्यास करे, उसके बाद अनुपात 1:2:2 का रख सकते है अर्थात जितनी देर मै श्वास ले उससे दुगने समय तक रोके और दुगने समय मे छोड़े जब अभ्यास अच्छा हो जाए तो अनुपात 1:4:2 का कर सकते है।
शास्त्रों मै श्वास लेने को पूरक, श्वास छोड़ने के रेचक और श्वास रोकने को कुंभक कहा गया है।
नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभ
नाड़ी शोधन प्राणायाम के आध्यात्मिक लाभ
1. इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का संतुलन
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शरीर में तीन प्रमुख नाड़ियाँ होती हैं –
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इड़ा नाड़ी (चंद्र शक्ति, शांति, अंतर्ज्ञान)
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पिंगला नाड़ी (सूर्य शक्ति, क्रियाशीलता, तर्क)
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सुषुम्ना नाड़ी (आध्यात्मिक मार्ग, ध्यान का केंद्र)
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नाड़ी शोधन प्राणायाम से इड़ा और पिंगला संतुलित होकर सुषुम्ना सक्रिय होती है।
जब सुषुम्ना प्रवाहित होती है, तब साधक ध्यान में सहजता से प्रवेश करता है।
2. ध्यान में स्थिरता
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अनियमित श्वास मन को चंचल बनाती है।
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नाड़ी शोधन श्वास को लयबद्ध करता है, जिससे मन शांत और ध्यान स्थिर होता है।
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यही स्थिति ध्यान-समाधि की ओर ले जाती है।
3. प्राण ऊर्जा (Life Force) की शुद्धि
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नाड़ी शोधन से प्राणवायु (Vital Energy) शुद्ध और शक्तिशाली बनती है।
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प्राण ऊर्जा का प्रवाह अवरोध रहित होता है, जिससे साधक को आंतरिक आनंद और आध्यात्मिक जागरण की अनुभूति होती है।
4. चक्र जागरण और संतुलन
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इस प्राणायाम से निचले चक्रों की अशुद्धियाँ धीरे-धीरे दूर होती हैं।
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विशेषकर अनाहत (हृदय चक्र) और आज्ञा चक्र (भृकुटि केंद्र) सक्रिय होने लगते हैं।
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चक्र संतुलन साधक को आत्मिक शक्ति और दिव्य अनुभव प्रदान करता है।
5. अंतर्ज्ञान (Intuition) और विवेक का विकास
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बायीं नासिका (इड़ा) का संबंध चंद्र ऊर्जा और अंतर्ज्ञान से है।
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दाहिनी नासिका (पिंगला) का संबंध सूर्य ऊर्जा और विवेक से है।
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दोनों के संतुलन से साधक को सही निर्णय, आत्मिक मार्गदर्शन और दिव्य अंतर्ज्ञान प्राप्त होता है।
6. आत्मिक शांति और समाधि का मार्ग
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नाड़ी शोधन का अभ्यास साधक को अनाहत नाद (आंतरिक ध्वनि) सुनने की क्षमता देता है।
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धीरे-धीरे साधक आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानने लगता है।
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यह साधना समाधि (योग की परम अवस्था) की ओर ले जाने वाला द्वार है।
शारीरिक लाभ
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श्वसन तंत्र मजबूत होता है।
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दमा, ब्रोंकाइटिस, एलर्जी में सहायक।
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रक्तचाप और हृदय रोग में लाभकारी।
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पाचन और चयापचय क्रिया में सुधार।
मानसिक लाभ
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तनाव, क्रोध और चिंता का स्तर घटता है।
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स्मरण शक्ति और एकाग्रता बढ़ती है।
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नींद गहरी और शांतिदायक होती है।
आध्यात्मिक लाभ
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इड़ा-पिंगला के संतुलन से सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होती है।
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साधक ध्यान में सहज प्रवेश करता है।
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आंतरिक शांति और आत्मज्ञान की अनुभूति।
वैज्ञानिक कारण और प्रभाव
नाड़ी शोधन केवल आध्यात्मिक नहीं, बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावी है।
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मस्तिष्क का संतुलन (Brain Hemispheres Balance)
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बायीं नासिका (इड़ा) → दाहिना मस्तिष्क (भावनाएँ, रचनात्मकता को प्रभावित करती है)।
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दाहिनी नासिका (पिंगला) → बायाँ मस्तिष्क (तर्क, निर्णय, गणना मै मदद करती ह)।
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नाड़ी शोधन इन दोनों गोलार्धों को संतुलित करता है।
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ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान
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श्वास-प्रश्वास की गहराई बढ़ने से रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा संतुलित होती है। वैज्ञानिक कारण:
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श्वास क्रिया में सुधार* नाड़ी शोधन फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है और ऑक्सीजन के सेवन को बेहतर बनाता है। धीमी, गहरी श्वास से फेफड़ों के निचले हिस्से में भी हवा पहुँचती है, जिससे गैस विनिमय (gas exchange) अधिक प्रभावी होता है। यह श्वास संबंधी रोगों जैसे अस्थमा के लक्षणों को कम करने में भी सहायक है।
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यह शरीर के pH level को भी नियंत्रित करता है।
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तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव
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यह प्राणायाम parasympathetic nervous system को सक्रिय करता है। जिसे 'विश्राम और पाचन' (rest-and-digest) तंत्र भी कहा जाता है। जब यह तंत्र सक्रिय होता है, तो हृदय गति और रक्तचाप कम होता है, और कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर घटता है। यह तंत्रिका तंत्र को शांत करता है, जिससे मन शांत और तनाव मुक्त होता है।
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हृदयगति नियंत्रित होती है और रक्तचाप सामान्य होता है।
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हार्मोनल संतुलन
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तनाव हार्मोन Cortisol का स्तर घटता है।
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नींद के हार्मोन Melatonin का स्राव बढ़ता है।
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मस्तिष्क तरंगें (Brain Waves)
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शोध बताते हैं कि नाड़ी शोधन से alpha waves सक्रिय होती हैं।
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हमारे मस्तिष्क में दो गोलार्ध होते हैं: बायां गोलार्ध (तार्किक और विश्लेषणात्मक) और दायां गोलार्ध (रचनात्मक और भावनात्मक)। यह प्राणायाम दोनों नथुनों का उपयोग करके दोनों मस्तिष्क गोलार्धों को संतुलित करने में मदद करता है। वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि यह एकाग्रता और स्मृति में सुधार कर सकता है।
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ये तरंगें मानसिक शांति, ध्यान और सृजनात्मकता से जुड़ी होती हैं।
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रक्तचाप का नियंत्रण
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जैसा कि पहले बताया गया है, यह प्राणायाम पैरासिंपैथेटिक तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित करता है। इससे रक्त वाहिकाएं शिथिल होती हैं, जिससे रक्तचाप कम होता है। नियमित अभ्यास उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है।
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पाचन क्रिया में सुधार पैरासिंपैथेटिक तंत्रिका तंत्र का एक और कार्य पाचन को बढ़ावा देना है। तनाव की स्थिति में, पाचन धीमा हो जाता है क्योंकि शरीर ऊर्जा को 'लड़ने या भागने' (fight-or-flight) के लिए निर्देशित करता है। नाड़ी शोधन इस प्रक्रिया को उलट देता है और पाचन अंगों को ठीक से काम करने में मदद करता है।
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नकारात्मक भावनाओं का प्रबंधन
यह प्राणायाम मन को शांत करता है और विचारों के प्रवाह को धीमा करता है। यह हमें वर्तमान में रहने में मदद करता है, जिससे क्रोध, निराशा और चिंता जैसी नकारात्मक भावनाएं कम होती हैं।
सावधानियाँ
नाड़ी शोधन एक सुरक्षित अभ्यास है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
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यह अभ्यास हमेशा खाली पेट करें।
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हृदय रोगी, अस्थमा या गंभीर श्वसन रोगी डॉक्टर से परामर्श लें, और कुंभक का अभ्यास बिल्कुल न करे।
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श्वास को जबरदस्ती रोकना या खींचना नहीं चाहिए।
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बच्चों को खेल-खेल में सरल रूप से कराएँ।
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यदि चक्कर आए तो तुरंत अभ्यास बंद करें।
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सही मुद्रा: रीढ़ की हड्डी सीधी रखें। झुककर बैठने से फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और श्वास लेना मुश्किल होता है।
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दबाव न डालें: नथुनों को बहुत जोर से न दबाएं। हल्का दबाव ही काफी है।
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क्षमतानुसार अभ्यास: श्वास रोकने की अवधि अपनी क्षमता के अनुसार ही रखें। अगर आपको चक्कर या बेचैनी महसूस हो तो तुरंत श्वास रोकना बंद कर दें।
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बीमारी की स्थिति में: अगर आपको सर्दी, जुकाम या कोई श्वास संबंधी बीमारी है, तो बिना श्वास रोके केवल अनुलोम-विलोम करें (यानी श्वास लें और छोड़ें)।
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उच्च रक्तचाप या हृदय रोग: अगर आपको उच्च रक्तचाप या हृदय रोग है, तो श्वास रोकना (कुंभक) न करें। केवल धीमी गति से श्वास लें और छोड़ें।
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गर्भावस्था: गर्भवती महिलाएं भी श्वास रोकने से बचें और धीरे-धीरे अभ्यास करें।
कोई भी समस्या होने पर योगी योग गुरु से संपर्क करे
प्राचीन योग ग्रंथों में उल्लेख
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हठयोग प्रदीपिका (2/7):
“नाडीशुद्धिं तु तत् कुर्याद्यावद्वायुं सुसम्यकं।
यावत्सुषुम्ना न नायाति तावन्नाडीशुधिर्भवेत्॥”
– जब तक सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय न हो जाए, साधक को नाड़ियों की शुद्धि करते रहना चाहिए।
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घेरंड संहिता (5/37):
“प्रथमं नाडिशुद्धिं तु कृत्वा प्राणं नियोजयेत्।”
– प्राणायाम की शुरुआत नाड़ी शोधन से करनी चाहिए।
“जहाँ नाड़ियाँ शुद्ध हैं, वहीं आत्मा परमात्मा से जुड़ती है।”
आधुनिक जीवनशैली में महत्व
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी, तनावपूर्ण कार्यशैली और इलेक्ट्रॉनिक स्क्रीन की अधिकता से लोग मानसिक रूप से असंतुलित हो रहे हैं। नाड़ी शोधन प्राणायाम एक ऐसा अभ्यास है जो –
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कार्यक्षमता बढ़ाता है,
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भावनाओं को संतुलित करता है,
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और व्यक्ति को जीवन के हर क्षेत्र में स्थिरता प्रदान करता है। यौगिक मंत्र
“ॐ प्राणायामाय विद्महे, मनः शुद्ध्यै धीमहि, तन्नः श्वासः प्रचोदयात् ॥”
अर्थ:
“हम प्राणायाम का ध्यान करते हैं, जो मन की शुद्धि का साधन है; वह दिव्य श्वास
हमें ज्ञान और संतुलन की ओर प्रेरित करे।”
नाडी शोधन के बारे मै अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
❓ नाड़ी शोधन प्राणायाम किसे नहीं करना चाहिए?
👉 उच्च रक्तचाप, हृदय रोगी और गर्भवती महिलाएँ श्वास रोकने वाला अभ्यास न करें।
❓ नाड़ी शोधन प्राणायाम कितनी देर करना चाहिए?
👉 शुरुआत में 5 मिनट, धीरे-धीरे 15–20 मिनट तक बढ़ा सकते हैं।
❓ क्या नाड़ी शोधन और अनुलोम-विलोम एक ही हैं?
👉 हाँ, साधारण रूप में दोनों एक जैसे हैं, पर उच्च अभ्यास में अंतर आता है।
निष्कर्ष
नाड़ी शोधन प्राणायाम केवल श्वास का व्यायाम नहीं है, यह तन-मन-आत्मा की चिकित्सा है। यह साधक को ऊर्जा, संतुलन और आंतरिक शांति प्रदान करता है। यदि आप प्रतिदिन 15 मिनट इसे जीवन का हिस्सा बना लें, तो न केवल रोगों से मुक्ति मिलेगी बल्कि जीवन की गुणवत्ता भी अद्भुत रूप से बढ़ेगी।
नाड़ी शोधन प्राणायाम एक सरल लेकिन अत्यंत शक्तिशाली तकनीक है। यह न केवल हमारे शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि मानसिक और भावनात्मक कल्याण के लिए भी बहुत लाभदायक है। आधुनिक जीवनशैली में तनाव और चिंता का सामना करने के लिए यह एक उत्कृष्ट प्राकृतिक समाधान है।
नियमित अभ्यास से आप अपने शरीर की ऊर्जा को संतुलित कर सकते हैं और एक शांत, स्वस्थ और सकारात्मक जीवन जी सकते हैं। इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाकर आप इसके चमत्कारी प्रभावों का अनुभव कर सकते हैं।
नाड़ी शोधन प्राणायाम
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नाड़ियों को संतुलित करता है,
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मन को स्थिर करता है,
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चक्रों को जाग्रत करता है,
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और आत्मा को परम चेतना से जोड़ता है।
“ॐ नमो नाड़ीशुद्धये, शांति स्वाहा।”
(अर्थ: मैं नाड़ियों के शुद्धि की साधना को प्रणाम करता हूँ, जिससे परम शांति
की प्राप्ति होती है।)
✨ “हर दिन कुछ क्षण नाड़ी शोधन प्राणायाम को दें – और देखें, आपका जीवन कैसे संतुलन और आनंद से भर जाता है।” ✨
प्राणायाम करने के लिए सामान्य दिशा निर्देश....
कैलाश बाबू
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