Monday, October 6, 2025

प्राणायाम के लिए पूर्ण मार्गदर्शन: स्वास्थ्य, शांति और दीर्घायु के लिए अभ्यास Complete Guide to Pranayama: Practice for Health, Peace & Longevity


प्राणायाम करने के लिए सामान्य दिशा-निर्देश

Complete Guide to Pranayama: Practice for Health, Peace & Longevity

लेखक: कैलाश बाबू योग

योग की विशाल परंपरा में प्राणायाम का विशेष स्थान है। प्राणायाम का अर्थ केवल श्वास लेना और छोड़ना नहीं है, बल्कि यह हमारी नाड़ी तंत्र, मन और प्राण ऊर्जा को शुद्ध और संतुलित करने की एक गहन साधना है। प्राणायाम शुरू करने से पहले यह समझना आवश्यक है कि हमारे शरीर में नाड़ियों का जाल किस प्रकार कार्य करता है।

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नाड़ी तंत्र का ज्ञान

योग के अनुसार हमारे शरीर में लगभग 72,000 नाड़ियाँ होती हैं। इनमें से 10 नाड़ियाँ प्रमुख मानी गई हैं, और उन 10 में से इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना का विशेष महत्व है।

  • इड़ा (चंद्र नाड़ी) – बाईं नासिका से जुड़ी हुई, शीतल और शांति प्रदान करने वाली।

  • पिंगला (सूर्य नाड़ी) – दाईं नासिका से जुड़ी हुई, उष्णता और ऊर्जा प्रदान करने वाली।

  • सुषुम्ना नाड़ी – रीढ़ की हड्डी के मध्य में स्थित, जब यह सक्रिय होती है तो योगी उच्च स्तर की साधना में प्रवेश करता है।

आम मनुष्य का प्राण प्रायः इड़ा और पिंगला में प्रवाहित होता है, जबकि उन्नत योगियों का प्राण सुषुम्ना में बहता है। यही कारण है कि साधारण साधक प्राणायाम के अभ्यास से धीरे-धीरे अपने प्राण प्रवाह को नियंत्रित करने की क्षमता प्राप्त करता है।

आपने स्वयं अनुभव किया होगा कि हमारी दोनों नासिकाएँ कभी एक साथ समान रूप से सक्रिय नहीं रहतीं। एक समय पर एक नाड़ी तीव्र होती है और दूसरी मंद। यही प्राकृतिक संतुलन शरीर में सर्दी-गर्मी का संतुलन बनाए रखता है। उन्नत साधक अभ्यास के माध्यम से इस प्रवाह को नियंत्रित कर सकते हैं – यही प्राणायाम की सिद्धि कहलाती है।

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Pranyama 


प्राणायाम के प्रकार types of pranayam

1. पतंजलि योग दर्शन के अनुसार

महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम को चार भागों में बाँटा है:

  1. पूरक – श्वास को धीरे और गहराई से भीतर लेना।

  2. रेचक – श्वास को धीरे और पूर्णता से बाहर छोड़ना।

  3. अन्तरकुम्भक – श्वास अंदर लेकर रोकना।

  4. बहिर्कुम्भक – श्वास बाहर छोड़कर रोकना।

2. हठयोग के अनुसार

हठयोग के प्रमुख ग्रंथ हठयोग प्रदीपिका और घेरण्ड संहिता में प्राणायाम को आठ प्रकार का बताया गया है, जिन्हें अष्टकुम्भक कहा गया है। ये हैं:

  • सूर्यभेदन

  • उज्जायी

  • सीत्कारी

  • शीतली

  • भस्त्रिका

  • भ्रामरी

  • मूर्च्छा

  • प्लाविनी

इसके अतिरिक्त नाड़ी शोधन प्राणायाम का विशेष महत्व है। यह हमारी नाड़ियों को शुद्ध करता है और आगे के उच्च अभ्यास के लिए तैयार करता है। प्राणायाम का अभ्यास करने से पहले कई महीनों तक नाड़ी शोधन प्राणायाम करना आवश्यक बताया गया है।

“प्राणायाम – तन की शक्ति, मन की शांति और आत्मा की मुक्ति।”

धीमी श्वास और दीर्घायु का संबंध

प्राचीन ऋषियों ने यह अद्भुत खोज की कि जिन प्राणियों की श्वसन गति धीमी और गहरी होती है, उनकी आयु लंबी होती है। उदाहरण के लिए – हाथी, अजगर और कछुआ। जबकि जिन प्राणियों की श्वसन गति तेज होती है, उनकी आयु कम होती है, जैसे पक्षी, कुत्ते और खरगोश।

इसी आधार पर कहा जाता है कि गहरी और धीमी श्वास हृदय को मजबूत करती है और दीर्घायु प्रदान करती है। प्राणायाम हमें यही सिखाता है – श्वास को नियंत्रित कर गहरा और लंबा बनाना।

“धीमी श्वास, लंबा जीवन।”

प्राणायाम करने से पहले ध्यान देने योग्य दिशा-निर्देश

1. श्वसन

  • श्वास हमेशा नाक से ही लेनी चाहिए।

  • अभ्यास से पहले नाक को जलनेति और सूत्र नेति से शुद्ध कर लेना सर्वोत्तम है।

प्राणायाम में श्वास के तीन मुख्य चरण होते हैं

  • पूरक (श्वास लेना): श्वास को धीरे-धीरे और नियंत्रित तरीके से अंदर लेना।

  • कुंभक (श्वास रोकना): श्वास को अंदर या बाहर रोककर रखना। यह चरण शुरू में वैकल्पिक है और इसे केवल विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।

  • रेचक (श्वास छोड़ना): श्वास को धीरे-धीरे और पूरी तरह से बाहर छोड़ना।

  • प्राणायाम में श्वास को धीरे-धीरे और गहराई से लेना महत्वपूर्ण है, जल्दबाजी न करें। श्वास को छोड़ने का समय लगभग श्वास लेने के समय से लगभग दोगुना होना चाहिए।

  • अपना पूरा ध्यान अपनी श्वास पर केंद्रित करें। महसूस करें कि कैसे प्राण वायु शरीर में प्रवेश कर रही है और कैसे शरीर से अशुद्धियाँ बाहर निकल रही हैं।

2. मुद्रा

  • प्राणायाम करते समय ज्ञान मुद्रा, प्राणायाम मुद्रा और अंजलि मुद्रा का प्रयोग लाभकारी है।

3. समय

  • सर्वोत्तम समय है प्रातःकाल, सूर्योदय से लगभग 2 घंटे पहले से लेकर 1 घंटे बाद तक।

  • यदि सुबह संभव न हो तो सूर्यास्त के समय भी किया जा सकता है।

  • सुबह के समय वातावरण शुद्ध, मन शांत और विचार कम होते हैं, इसलिए अभ्यास सफल होता है।

4. स्थान

  • अभ्यास के लिए स्थान स्वच्छ, शांत, हवादार और सुखद होना चाहिए।

  • अत्यधिक ठंड, गर्मी या हवा के झोंके वाली जगह पर अभ्यास न करें।

  • कमरे में अभ्यास करते समय दरवाजे-खिड़कियाँ खुली रखें ताकि शुद्ध वायु आती रहे।

5. आसन

  • प्राणायाम के लिए सर्वश्रेष्ठ आसन है सिद्धासन।

  • अन्य विकल्प – पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन।

  • यदि ये संभव न हों तो सीधी पीठ के साथ कुर्सी पर बैठकर भी अभ्यास किया जा सकता है।

  • प्राणायाम के लिए सही आसन का चुनाव बहुत महत्वपूर्ण है। पद्मासन, सुखासन, वज्रासन या सिद्धासन में बैठें। यदि आप इन आसनों में सहज नहीं हैं, तो आप अर्ध-पद्मासन या किसी भी आरामदायक स्थिति में बैठ सकते हैं, लेकिन आपकी रीढ़ की हड्डी सीधी होनी चाहिए।

6. क्रम

  • प्राणायाम हमेशा आसनों के बाद करना चाहिए।

  • प्राणायाम के बाद कुछ समय शवासन करना अनिवार्य है।

7. स्नान

  • स्नान के बाद प्राणायाम करना श्रेष्ठ है।

  • यदि संभव न हो तो कम से कम हाथ-पैर और मुँह धो लेना चाहिए।

  • अभ्यास के बाद आधे घंटे तक स्नान नहीं करना चाहिए।

8. वस्त्र

  • हमेशा ढीले-ढाले, हल्के और आरामदायक वस्त्र पहनें।

  • सर्दी या मच्छरों से बचने के लिए कंबल या चादर का प्रयोग करें।

9. आहार और पेट की स्थिति

  • प्राणायाम हमेशा खाली पेट करें।

  • भोजन के 3–4 घंटे बाद ही अभ्यास करें।

  • शुरुआत में मिताहार अपनाएँ – आधा पेट भोजन, एक चौथाई पानी और एक चौथाई खाली।

  • भोजन हल्का, पौष्टिक और सात्त्विक होना चाहिए – दूध, अनाज, दालें, फल, सब्जियाँ सर्वोत्तम हैं।

10. तनाव से बचें

  • अभ्यास धीरे-धीरे और अपनी क्षमता के अनुसार करें।

  • दूसरों से तुलना न करें।

  • जबरदस्ती कुंभक न करें, अन्यथा फेफड़ों और पाचन तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।

11. संभावित कुप्रभाव

  • अभ्यास शुरू में शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालता है, जिससे खुजली, झनझनाहट, गर्मी-ठंड का अनुभव, शरीर का भारी या हल्का लगना जैसी स्थितियाँ हो सकती हैं।

  • यह सामान्य है और कुछ दिनों में समाप्त हो जाता है।

  • यदि समस्या लंबे समय तक बनी रहे तो योग्य योगगुरु से परामर्श लें।

  • अपनी शारीरिक और मानसिक क्षमता के अनुसार ही प्राणायाम करें। अपनी क्षमता से अधिक प्रयास न करें, क्योंकि इससे नुकसान हो सकता है।

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12. सीमाएँ

  • गंभीर रोग की अवस्था में स्वयंसिद्ध होकर अभ्यास न करें।

  • योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही अभ्यास करना सुरक्षित है।

  • प्रत्येक प्राणायाम के बाद थोड़ा विश्राम करें। अपने शरीर को आराम दें।

  • प्राणायाम करते समय अपनी आँखें बंद रखें ताकि आपका ध्यान केंद्रित रह सके।

  • यदि आपको कोई स्वास्थ्य समस्या है, जैसे कि उच्च रक्तचाप, हृदय रोग या श्वसन संबंधी कोई बीमारी, तो प्राणायाम शुरू करने से पहले किसी चिकित्सक या अनुभवी योग प्रशिक्षक से सलाह लें।

  • गर्भावस्था के दौरान कुछ विशेष प्राणायामों से बचना चाहिए।

  • खाली पेट ही प्राणायाम का अभ्यास करें।

  • प्राणायाम करते समय कभी भी जबरदस्ती न करें। सहजता और सरलता के साथ अभ्यास करें।

13. नशा निषेध

  • प्राणायाम प्रारंभ करने के बाद धूम्रपान, शराब और किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना चाहिए।

  • अन्यथा अभ्यास का कोई लाभ नहीं होगा।

14. संभावित कुप्रभाव

शुरुआत में शरीर शुद्ध होता है, जिससे खुजली, गर्मी-ठंड, झनझनाहट महसूस हो सकती है।


👉 यह सामान्य है और धीरे-धीरे समाप्त हो जाता है।
👉 यदि लंबे समय तक समस्या बनी रहे तो गुरु से परामर्श लें।

14. दिशा

  • प्राणायाम करते समय आपका मुख उत्तर या पूर्व दिशा की ओर होना शुभ माना जाता है।

  • पृथ्वी में उत्तर से दक्षिण की ओर एक प्राकृतिक चुंबकीय प्रवाह (Magnetic Flux) रहता है।

  • जब हम उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठते हैं तो हमारे शरीर का सिर (Brain) और रीढ़ की हड्डी (Spinal Cord) इस चुंबकीय प्रवाह के साथ संरेखित (Aligned) हो जाते हैं।

  • यह स्थिति तंत्रिका तंत्र (Nervous System) को संतुलित करती है और मस्तिष्क में विद्युत आवेग (Neural Impulse) बेहतर तरीके से संचरित होते हैं।

परिणाम: ध्यान और प्राणायाम में एकाग्रता अधिक बढ़ती है।

गुरुजनों का कहना भी यही है –


“दिशा बदले तो परिणाम भी बदल जाते हैं, उत्तर और पूर्व दिशा में बैठा साधक शीघ्र ही उन्नति करता है।”

 “श्वास पर अधिकार, जीवन पर अधिकार।”


 प्राणायाम का वैज्ञानिक प्रमाण

प्राणायाम केवल आध्यात्मिक साधना ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार भी मौजूद हैं। आधुनिक विज्ञान ने भी यह स्वीकार किया है कि नियंत्रित श्वसन (Controlled Breathing) का शरीर और मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है।

1. ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का संतुलन

  • सामान्य श्वसन तेज और उथला होता है, जिससे फेफड़ों की पूर्ण क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता।

  • प्राणायाम गहरी और धीमी श्वास सिखाता है, जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन का आदान-प्रदान अधिक होता है और रक्त शुद्ध रहता है।

  • इससे शरीर की कोशिकाएँ बेहतर ढंग से ऊर्जा प्राप्त करती हैं।

 2. मस्तिष्क पर प्रभाव

  • रिसर्च में पाया गया है कि प्राणायाम करने से पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम (Parasympathetic Nervous System) सक्रिय होता है।

  • यह हमारे मस्तिष्क को शांत करता है, तनाव कम करता है और एकाग्रता बढ़ाता है।

  • All India Institute of Medical Sciences (AIIMS) की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्राणायाम अवसाद और चिंता को कम करने में सहायक है।

 3. हृदय और रक्तचाप

  • प्राणायाम से हृदय गति (Heart Rate) स्थिर होती है और रक्तचाप (Blood Pressure) नियंत्रित रहता है।

  • Journal of Alternative and Complementary Medicine (2013) में प्रकाशित अध्ययन बताता है कि नियमित प्राणायाम हाई ब्लड प्रेशर के रोगियों में उल्लेखनीय लाभ पहुंचाता है।

 4. नींद और हार्मोन

  • गहरी श्वसन प्रक्रिया पीनियल ग्रंथि को संतुलित करती है, जिससे मेलाटोनिन हार्मोन का स्राव बेहतर होता है।

  • यह नींद की गुणवत्ता बढ़ाता है और शरीर की जैविक घड़ी (Biological Clock) को नियमित करता है।

5. रोग प्रतिरोधक क्षमता

  • प्राणायाम से रक्त में ऑक्सीजन स्तर (Oxygen Saturation) बढ़ता है, जिससे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (Immune System) मजबूत होती है।

  • शोध में पाया गया है कि प्राणायाम करने वाले लोगों में श्वसन संबंधी रोग (Asthma, Bronchitis) का खतरा कम हो जाता है।


  • फेफड़ों की क्षमता (Lung Capacity) बढ़ाता है।

  • मस्तिष्क में ऑक्सीजन आपूर्ति सुधारता है।

  • तनाव हार्मोन कॉर्टिसोल को कम करता है।

  • रक्तचाप और मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायक है।

  • डिप्रेशन और एंग्ज़ायटी के रोगियों में मानसिक संतुलन प्रदान करता है।

 इसलिए प्राणायाम केवल आध्यात्मिक साधना नहीं, बल्कि वैज्ञानिक स्वास्थ्य पद्धति भी है।

प्रेरणादायक उदाहरण

कहा जाता है कि ऋषि मुनियों ने केवल प्राणायाम और ध्यान से सैकड़ों वर्ष तक स्वस्थ जीवन जिया। आधुनिक समय में भी कई लोग असाध्य रोगों (जैसे अस्थमा, हाई बीपी, तनाव) से केवल प्राणायाम के अभ्यास से मुक्त हुए हैं।

 “हर गहरी श्वास के साथ भीतर बहता है अमृत।”

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

Q1. क्या बच्चे प्राणायाम कर सकते हैं?
👉 हाँ, लेकिन केवल गहरी श्वास और नाड़ी शोधन।

Q2. क्या प्राणायाम से वजन कम होता है?
👉 हाँ, भस्त्रिका और कपालभाति जैसे अभ्यास मेटाबॉलिज़्म को तेज करते हैं।

Q3. क्या प्राणायाम रोगों का इलाज है?
👉 प्राणायाम शरीर को रोग-प्रतिरोधक बनाता है, लेकिन गंभीर रोग में चिकित्सक और गुरु दोनों की सलाह आवश्यक है।

Q4. कितना समय प्राणायाम करना चाहिए?
👉 शुरुआती साधक 10–15 मिनट से शुरू करें और धीरे-धीरे 30–40 मिनट तक बढ़ाएँ।

निष्कर्ष

प्राणायाम केवल श्वास की क्रिया नहीं है, यह आत्मा, मन और शरीर को शुद्ध करने का माध्यम है। यह साधारण मनुष्य को भी असाधारण चेतना तक पहुँचाने की शक्ति रखता है। धीरे-धीरे नियमित अभ्यास से प्राणायाम आपको मानसिक शांति, शारीरिक बल, दीर्घायु और आत्मिक आनंद प्रदान करेगा।

याद रखें – अभ्यास हमेशा धीरे-धीरे, निरंतर और गुरु के मार्गदर्शन में करें। तभी प्राणायाम अपने वास्तविक फल प्रदान करेगा।

 “जिसने श्वास को साध लिया, उसने जीवन को साध लिया।”

कैलाश बाबू


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